क्या है सीबीएसई का SAFAL मॉडल, जिससे बदल जाएगा पढ़ाई और परीक्षा का तरीका
What is SAFAL Model of CBSE: केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (Central Board of Secondary Education) भारत की स्कूली शिक्षा का एक प्रमुख बोर्ड है। भारत के अन्दर और बाहर के बहुत से निजी विद्यालय इससे सम्बद्ध हैं।
सीबीएसई का प्रमुख उद्देश्य शिक्षण संस्थानों को अधिक प्रभावशाली ढंग से संचालित करना, विद्यार्थियों की शैक्षिक जरूरतों को पूरा करना है। सीबीएसई बोर्ड कक्षा 1 से लेकर कक्षा 12 तक के लिये पाठ्यक्रम तैयार करता है और साल में दो मुख्य परीक्षाएं संचालित करता है जिसमें 10वीं कक्षा के लिये अखिल भारतीय सेकेण्डरी स्कूल परीक्षा (AISSE) एवं 12वीं कक्षा के लिये अखिल भारतीय सिनीयर स्कूल सर्टिफिकेट परीक्षा (AISSCE) शामिल हैं। इसके अतिरिक्त अखिल भारतीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा (AIEEE) और अखिल भारतीय प्री-मेडिकल परीक्षा (AIPMT) का भी संचालन करता था।
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) समय समय पर शिक्षण व्यवस्था में बदलाव करता है और अब बोर्ड स्कूलों की पढ़ाई और परीक्षा प्रणाली में बड़ा बदलाव करने जा रहा है। अब सीबीएसई कक्षा 3, 5 और 8 के लिए एक नई परीक्षा प्रणाली शुरू कर रहा है जिससे पढ़ाई और परीक्षा का तरीका बदलने जा रहा है। यह बदलाव सिर्फ परीक्षा के तरीके तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि बच्चों के सोचने, समझने और ज्ञान को लागू करने की क्षमता को भी बढ़ाएगा।
ALSO READ:
सीबीएसई का SAFAL मॉडल
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) शिक्षा और परीक्षा में जिस बदलाव की योजना बना रहा है, उसका नाम है SAFAL (Structured Assessment for Analyzing Learning)। यह कक्षा 3, 5 और 8 के लिए एक नई परीक्षा प्रणाली है। जिस तरह सीबीएसई ने कक्षा 6 से 10 तक के लिए योग्यता आधारित परीक्षा ढांचा (Competency Based Assessment Framework) पहले ही लागू कर दिया है, उसकी तर्ज पर अब कक्षा 3, 5 और 8 के लिए SAFAL (Structured Assessment for Analyzing Learning) प्रणाली लागू की जा रही है। CBAF में विज्ञान, गणित और अंग्रेजी जैसे मुख्य विषयों पर बच्चों की समझ, तर्कशक्ति और अवधारणा पर ध्यान दिया जाता है।
CBSE SAFAL Model PDF in Hindi
क्या है SAFAL?
SAFAL (Structured Assessment for Analyzing Learning) यानी सीखने के विश्लेषण के लिए संरचित मूल्यांकन प्रणाली है।केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने स्कूलों में योग्यता-आधारित निदानात्मक मूल्यांकन, 'शिक्षण विश्लेषण हेतु संरचित मूल्यांकन (सफल)' शुरू किया। यह शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने और योग्यता-केंद्रित शिक्षा को आगे बढ़ाने के हमारे निरंतर प्रयासों का एक हिस्सा है। यह ऑनलाइन परीक्षा छात्रों की मूलभूत समझ, तर्क, ज्ञान के उपयोग और सोचने की क्षमता की जांच करेगी।
सफल की खासियत
- यह एक निदानात्मक मूल्यांकन है जिसे ग्रेड देने के बजाय दक्षताओं की उपलब्धि को मापने के लिए डिजाइन किया गया है।
- यह छात्रों की आलोचनात्मक सोच, वैचारिक समझ और तर्क क्षमता जैसी मुख्य दक्षताओं का मूल्यांकन करता है।
- यह प्रमाणन के लिए कोई परीक्षा या प्रतियोगिता नहीं है।
- इसका प्राथमिक उद्देश्य शिक्षण और अधिगम की गुणवत्ता में सुधार के लिए स्कूलों और शिक्षकों को विकासात्मक प्रतिक्रिया प्रदान करना है।
- यह अब सभी सीबीएसई-संबद्ध स्कूलों के लिए एक अनिवार्य निदानात्मक मूल्यांकन है।
- मूल्यांकन डिजिटल रूप से किया जाता है, हालांकि विशिष्ट परिस्थितियों में पेन-एंड-पेपर मोड के लिए एक बार का अपवाद उपलब्ध है।
क्या है सीबीएसई का मकसद
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) अब स्कूलों की पढ़ाई और परीक्षा प्रणाली में बड़ा बदलाव करने जा रहा है। सीबीएसई का मकसद है कि बच्चों को सिर्फ रटकर पास होने की आदत से छुटकारा मिले और आने वाली पीढ़ी सिर्फ अंकों की दौड़ में न लगे, बल्कि असली स्किल्स में भी आगे रहे। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के तहत सीबीएसई ने एक खास ऑनलाइन प्लेटफॉर्म की योजना बनाई है। इससे पता चलेगा कि छात्रों ने अपने विषयों को कितना समझा है और क्या वे असल जीवन में उसका इस्तेमाल कर पा रहे हैं या नहीं।
SAFAL मॉडल की खास बातें
- योग्यता-आधारित शिक्षण पर ध्यान केंद्रित - रटने पर नहीं
- वैचारिक स्पष्टता, आलोचनात्मक सोच और समस्या-समाधान पर जोर
- कोई रैंक नहीं - केवल शिक्षण और अधिगम को बेहतर बनाने के लिए निदानात्मक अंतर्दृष्टि
- रचनात्मक, कम-दांव वाले मूल्यांकन का समर्थन करने के लिए डिजाइन किया गया
परीक्षा और मूल्यांकन का स्वरूप
सीबीएसई की नई योजना में NEP 2020 की सिफारिश के अनुसार, मूल्यांकन का तरीका भी बदलेगा। मूल्यांकन छात्रों को सिर्फ याददाश्त पर निर्भर नहीं बनाएगा, बल्कि इस तरह होगा कि वह बच्चों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करे। इस प्रणाली से पता चलेगा कि बच्चों ने विषय को कितना गहराई से सीखा है। साथ ही कौन-सा बच्चा किस हिस्से में पिछड़ रहा है। इस प्रणाली से शिक्षकों को ऐसा डेटा मिलेगा जिससे वे बच्चों की जरूरतों के अनुसार पढ़ाने का तरीका बदल सकें।
